लोकगीत उड़ै पतंग हवा कै संग

*लोकगीत.....*
*उड़ै पतंग हवा कै संग*



उड़ै पतंग हवा के संग, छू जावै आकाश।
हँसके कहती बात एक,छूलो आके पास।


बच्चे- बूढ़े दौड़ैं सब, कउन पतंग पावै।
उड़ी- उड़ी वो कटी- कटी, देखि ह्रदय हर्षावै।
नई पतंग मिलै हमको, बाजी इहै जितावै।
हार- जीत में कुछ न होवै ,  करवावै विश्वास।
उड़ै पतंग हवा के संग..................।।


रंग- बिरंगा रूप सदा, मोहै सबका ध्यान।
आज हुई स्वच्छंद बस, देवै सबको ज्ञान।
इठलावै बलखावै जब, होवै नवल विहान।
इहै विहान सबै भावै, हर मन कै है आस।।
उड़ै पतंग हवा के संग..................।।
 
ठिठुरन, जकड़न साथ अहै, गावै मेघ मल्हार।
सर्दी कै मौसम इ लावै,शीतल मस्त बयार।
सूर्य मकर के साथ है,छाई नई बहार।
गंगा कै स्नान कौ भावै, पावन जावै मास।
उड़ै पतंग हवा कै संग..............।।


खेतों में हरियाली अरु,नव धन- धान्य बहार।
तिल गुड़ लावै साथ तब, इ संक्रांति त्योहार।
खिचड़ी के संग ही जचै, पापड़ घीउ अचार।
इका जेवै चाव से जो, सुख छावै तब खास।
उड़ै पतंग हवा के संग.................।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*


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