मधु शंखधर 'स्वतंत्र
प्रयागराज
मधु के मधुमय मुक्तक
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बंशी बजती श्याम की,राधा आए पास।
अधर हँसी मुस्कान से, नव जीवन की आस।
एक कृष्ण का प्रेम ही,देता है संज्ञान,
राधा अन्तर्मन बसी, प्रेम सहज विश्वास।।
श्याम वर्ण मुख तेज है,घुँघराले हैं बाल।
छवि अनुपम यह देखकर,हर्षित हैं सब ग्वाल।
प्रेम ग्वाल का है अलग, दर्शन की बस चाह,
एक नज़र देखें अगर, जीवन हो खुशहाल।।
मोह, प्रेम दोनों अलग, जानो इसका रूप।
प्रेम मनोहर छाँव है,मोह सघन है धूप।
प्रेमी पूजें कृष्ण को, राधा जी के साथ,
मधु प्रेम धन से बने,मन मंदिर में भूप।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*21.01.2020*
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