माना तुम्हारे जैसे ओहदेदार नहीं है।
कुछ तो हैं मगर काम के बेकार नहीं है।।
लोगों की निगाहों में नाचीज ही सही।
जिंदगी से फिर भी बेजार नहीं है।।
तेरे बसाए हुए नफरत के शहर में।
जानते हैं हम किसी का प्यार नहीं है।।
दिलों को जोड़ने वाले हैं धागे मोहब्बत के।
जड़ों को काटने वाली ये तलवार नहीं है।।
बांटते फिरते हैं जो इल्म की दौलत।
सेवा है ये सच्ची व्यापार नहीं है।।
कोशिशें नाकाम हैं, नाकाम हैं असर।
अगर किसी को हम पे ऐतबार नहीं है।।
है शगल तुम्हारा रिश्तों को तोड़ना।
तो फिर जुड़े रहने के आसार नहीं हैं।।
सुख दुख में साथ रहकर एक दूसरे को।
जो हौंसला ना दे वो परिवार नहीं है।।
-- मुक्ता तैलंग, बीकानेर।
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