लघु कहानी : नये रिश्ते
“मम्मा , ददा को क्या हुआ है ? ये ऐसे सबके सामने क्यों सो रहे हैं? बच्चे ने अपनी मां के पल्लू को खींचते हुए पूछा।
सबके सामने सवाल पूछे जाने के कारण मम्मा को उत्तर देना ही पड़ा क्योंकि वह जानती थी, मेरे बेटे की जिज्ञासा तब तक शांत न होती है जब तक उसके सवाल का जवाब न दे दिया जाए। आजकल सब घरों में पढ़ी लिखी मम्मियां इसी तरह से बच्चों की परवरिश करती हैं। उसने अपने बच्चे को पुचकारते हुए बताया, ये आपके दादाजी हैं, जो अब हमारे साथ नहीं रहेंगे, आज से कहीं ओर रहा करेंगे, हमसे मिलने भी नहीं आऐंगे। ..” फिर वह फक्क कर रोने लगी । रुमाल मुंह पर आते रिश्तेदारों व मित्रों से भीगी आंखों से दुखी संवेदनाओं को बटोरने में जुट गई।
बच्चे ने इधर उधर अपने हाथों को हिलाया और दादा जी की ओर बढ़ने लगा। मम्मा से हाथ छुड़ाकर वह दादा जी के सामने खड़ा हो चेहरा देखने लगा। पता नहीं उसे क्या हुआ, वह जोर से बोला, मम्मा ये हमारे ददा हैं, दादाजी नहीं, ये हमें रोज स्कूल छोड़ने व लेने जाते थे। मुझे रास्ते मे स्टोरी सुनाते थे, चाकलेट ,आइसक्रीम खिलाते थे, हम दोनों मिलकर सब्जियां व फल खरीदते थे रोज स्कूल वापसी पर, मम्मा , ददा मुझे शाम को गार्डन ले जाते और झूला झूलाते थे, वहां बहुत सारे बच्चे इनके साथ खेलते थे। मम्मा के पल्लू से खींच कर , कहने लगा, देखो, देखो, ये हमारे ददा हैं, दादाजी नहीं हैं। तुम झूठ क्यों बोल रही हो ? जाओ हम आपसे बात नहीं करते , ऊ, ऊ ऊ, कुट्टी..। बच्चा जोर जोर से रोने लगा, ददा कोनींद से उठने को कहने लगा, फिर बोला , ददा थोड़ा रुको , मैं अपने गार्डन वाले दोस्तों को बुलाकर लाता हूं, वे तुम्हें जरुर नींद से जगा देंगे।”
इतना कह वह घर से बाहर की ओर दौड़ने लगा। अब मम्मा ने भी उसे पकड़ने की कोई कोशिश नहीं की।
अभी गेट तक पहुंचा ही था कि उसे पापा ने बाहर जाते हुए देख , हाथ से पकड़कर गोदी में उठा लिया। परंतु बच्चे के मन में इतनी उथल-पुथल मची हुई थी, वह अपने पापा से जिद्द करने लगा, कि मुझे अपने मित्रों को यहां ददा को जगाने के लिऐ बुलाना है।
पापा अपने मित्रों से आंख चुरा कर बच्चे को एक कोने में ले जाकर समझाने लगे। “ ये आपके ददा मेरे पापा हैं ये आपके दादाजी ही हैं, जो आपके साथ रहते थे, आपकी उसी तयह से देखभाल करते थे, जैसे उन्होंने मेरी यानि तुम्हारे पापा की थी। बच्चे की जिज्ञासा को कुछ क्षण के लिए अल्पविराम लग गया। फिर वह तेजी से अपने पापा की गोद से उतरकर , मम्मा की ओर दौड़ा। मम्मा के पास पहुंच कर जोर से चिल्लाते हुए कहने लगा, मम्मा आपने मुझे ये क्यों नहीं बताया, ये मेरे दादाजी हैं, आप तो उनसे सारे काम करवाती थी जैसै शामू काका और बिंदु मौसी करती हैं… ?
इतना सुनते ही चारों ओर रिश्तों का सन्नाटा पूरी तरह से पसर गया।
मम्मा ने जोर से बच्चे को पकड़ा और उसे शामू काका के हवाले करते हुए धीरे स्वर में कहा, “ काका, इसे नाश्ता करवा दो और फिर बाहर घूमाने ले जाओ, जब यहां पूरा कार्यक्रम संपन्न न हो जाए तब तक घर मत लाना।”
शामू काका भी दादाजी को छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहता था, पर मालकिन की आज्ञा न मानना अपने पेट पर लात मारने समान हो जाता। उसने तुरंत बच्चे को गोद में लिया और वहां से चला गया।
शशि दीपक कपूर
( स्व-रचित व मौलिक)
१४.०१.२०२०
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