नीलम जैन
बाड़मेर राजस्थान
बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं,
जाने कब से राह निहारुं।
जब से तुम आने का कह गए,
दहलीज पर तांक रही हूं ।।
भोर उजाले आते औं जाते
दिन भर की थकान उतारुं।
चैन सुकून को परोस प्यार से,
सुख की चादर बिछा रही हूं।।
सांझ की लाली चटक रही हैं,
रात के सितारें नगमें जड़ाऊं।
ख्वाबों की बेला इत्र सी महके
कस्तूरी सुगंध फैला रही हूं।।
बेबस व्याकुल द्वार खड़ी मैं,
जाने कब से राह निहारुं।
कान्हा की मुरली मन को मोहे,
मन की ज्योत जला रही हूं।।
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*नीलम जैन🌹*
*बाड़मेर राजस्थान*
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