निधि मद्धेशिया
कानपुर
अथाह*
धन-वैभव मिला है अथाह...
मीराधा बनूँ इच्छा अथाह...
पहले ही कर दिया नाम
मेरे एक वन,जिसमें
बावली-सी फिरती रहूँ अथाह...
बनते नवगीत कैसे
छंद हैं सारे अधूरे,
कर्मो को मिले मार्ग अथाह...
आयी कैसे धुन परदेशी
हैं अधूरे राग भी,
बस समझना है अथाह...
स्वांग की कोरी शहनाई सुन
कठिनाइयों में हो जाओ चुपके
बनती है बात अथाह...
1/1/2020
10:51 AM
निधि मद्धेशिया
कानपुर
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