निशा"अतुल्य बसंत खुशियों का लगा मेला

निशा"अतुल्य


बसंत


खुशियों का लगा मेला 
जग हुआ पीला पीला 
गगन पतंग उड़े 
वंदना भी गाइये।


पीत वस्त्र धारण हो
मीठे मीठे चावल हो
भोग शारदा को लगा
सब जन खाइये।


नए नए पात आएं
हरी हरी धरा होएं
तितली भी उड़ चली
सुगन्ध उड़ाइये।


धानी चुनर कमाल
सबरंग बेमिसाल
मीठी भँवर गुंजार 
मन मे बसाइये ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य


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