निशा"अतुल्य" कविता भूल 

 


निशा"अतुल्य"
भूल 


कुछ पल बीते याद दिलाते हैं
जब माँ ने अ आ सिखाया था
पकड़ हाथ मेरा सँग लेखनी
लिखना मुझको सिखलाया था।


अब अक्षर ज्ञान बघार कर
मन मेरा भरमाया था ।


कैसे मन मेरा भूल गया 
अस्तित्व मेरा नही बिन उनके था ।


कर दी रचना समर्पित जब माँ को 
तब दूर मन का व्यवधान हुआ था।


आशिर्वाद स्वरूप तब माँ से 
हर सफल रास्ता पाया था ।


आज जो भी हूँ उनकी हूँ कृति
बन गई,जो उन्होंने मुझे बनाया था।


ये ज्ञान दिया था उन्होंने मुझको 
सोच का मेरे विस्तार किया था ।


मैं शत शत नमन करूँ मात पिता को
जिन्होंने जीना मुझे सिखाया था।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


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