निशा"अतुल्य"
भूल
कुछ पल बीते याद दिलाते हैं
जब माँ ने अ आ सिखाया था
पकड़ हाथ मेरा सँग लेखनी
लिखना मुझको सिखलाया था।
अब अक्षर ज्ञान बघार कर
मन मेरा भरमाया था ।
कैसे मन मेरा भूल गया
अस्तित्व मेरा नही बिन उनके था ।
कर दी रचना समर्पित जब माँ को
तब दूर मन का व्यवधान हुआ था।
आशिर्वाद स्वरूप तब माँ से
हर सफल रास्ता पाया था ।
आज जो भी हूँ उनकी हूँ कृति
बन गई,जो उन्होंने मुझे बनाया था।
ये ज्ञान दिया था उन्होंने मुझको
सोच का मेरे विस्तार किया था ।
मैं शत शत नमन करूँ मात पिता को
जिन्होंने जीना मुझे सिखाया था।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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