निशा"अतुल्य'
मीरा के श्याम
दिनाँक 25/ 1/ 2020
भक्ति का स्वरूप मीरा
पी गई विष का प्याला
गिरधर गिरधर करते करते
अमृत बन गई हाला।
मेरे तो गिरधर गोपाल
न कोई दूजा चाहा
हो गई अमर मीरा
रटते रटते गोपाला ।
किनी साधु की संगत
तब घर बार सब छोड़ा
समा गई गिरधर में खुद ही
पट मंदिर जब खोला ।
मीरा जैसी भक्ति दो प्रभुवर
मीरा के श्याम तारो मुझको
पार करूँ व्यवधान सभी मैं
पा कर कर्म ज्ञान तुम्हारा ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य'
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