निशा"अतुल्य"
मुश्किल है जीना
स्वार्थ भरी इस दुनिया में मुश्किल है जीना
स्वार्थी है लोग सभी,नही मिले दिल को चैना
स्वार्थ की इंतहा तो देखो बिन बात का विरोध करें
कानून है जो रखवाले तुम्हारे,उन्हीं को तुम तोड़ रहे ।
फिर कहते आजादी चाहिए, कैसी आजादी बोलो तो
जब तब बात करो गद्दारों सी,देश को देते रोज ही गाली।
कभी करते हो टुकड़े देश के कभी कट्टरता की बात करो
सोचो पहले फिर तुम बोलो सोचो तुम क्या करते हो ।
मांग रहे तुम जैसी आजादी दूजे को भी चाहिए वो ही
तुम कैसे हो दूध धुले और कैसे दूजा कट्टरपंथी ।
समझो आजादी की परिभाषा संविधान का मान करो
प्रस्तावना है संविधान की प्रतिबद्धता सर्व प्रथम राष्ट्र की एकता,अखंडता ।
नही समझे जो मर्म देश का उसका मुश्किल है जीना
प्रेम और सद्व्यवहार रखो तो हर मुश्किल आसान रहे।
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