निशा"अतुल्य"
उड़ान
दिनाँक 18/ 1/ 2020
मैं स्त्री
सुनती सबकी
करती भी थी कही सबकी
आज मैंने अपने पंखों को
जरा सा खोला
थोड़ा सा फड़फड़ाया
और भरी एक उड़ान
देखा सभी ने आश्चर्य से मुझे
खुले पंखों को देख मेरे
नही किया यकीन किसी ने
कि मेरी परवाज भी हो सकती है
इतनी ऊँची आसमान के करीब
खिलते पुष्प सी,डोलते भंवरों सी
रंग बिरंगी उड़ती तितली सी
व्यक्त करती अपनी अभिव्यक्ति
दर्ज करती विरोध अव्यवस्थाओं का
देख जिसे दबाई अँगुली दांतो तले
और देखी मेरी उड़ान
ऊँची मेरी तमन्नाओं की
हो कर जिस पर सवार मैं
हो गई उन्मुख
तोड़ती सभी दायरों को
जो नही स्वीकार्य अब मुझे
मेरा आकाश,मेरी उड़ान
मेरी जिंदगी मेरे ही सपने
है आश्चर्यचकित सभी
जिंदगी की चाहते अब मेरी
जो हैं सिर्फ मेरी
मेरे ही पंखों पर सवार
उड़ान मेरी
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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