नाम: श्रीकान्त दुबे
पता: बदायूँ (उत्तर प्रदेश)
मो०: 9711206950
कविता शीर्षक: *मेरी ख़्वाहिश*
किसी ने ताज को मांगा किसी ने तख़्त को मांगा,
गुजारूं हिन्द की ख़िदमत में मैंने वक़्त को मांगा।
नहीं ख़्वाहिश मुझे ये ताज, दौलत और शोहरत की,
हिफ़ाजत में वतन की बह सके उस रक्त को मांगा।।
ये जां जाए तो जाए पर वतन लुटने नहीं दूंगा
ह्रदय पर मां के दुश्मन के कदम रुकने नहीं दूंगा
हुआ जब जन्म मेरा इस जमीं ने अंक में पकड़ा
जमीं का इंच भर टुकड़ा भी अब बंटने नहीं दूंगा
मेरा ये जन्म केवल देश हित में ही गुज़र जाये
हर एक कोने से शांति और ख़ुशियों की ख़बर आये
ना हों झगड़े क़भी भी मुल्क़ में जाति और धर्मों पर
फ़िज़ाएं महकें अपनेपन से ख़ुशबू इस क़दर आये
©श्रीकान्त दुबे✍🏻
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