स्वामी जी संदेश जग
स्नेह सुधा भावन हृदय , नीरज सुरभि सुजान।
जीवन रत हिन्दी वतन , करूँ अन्त विश्राम।।१।।
मर्माहत है कविहृदय , दशा दिशा लखि देश।
लूँ कृपाण कर ढाल मैं , दूँ महाकाल संदेश।।२।।
है स्वतंत्र माँ भारती , सिसक रही क्यों आज।
तुला व्यर्थ बलिदान को , देशद्रोह आवाज़।।३।।
भृकुटि तान गिरिजा खड़ी ,आवाहन गिरिजेश।
अवतारन तारक हनन , कार्तिकेय मयूरेश।।४।।
तुली जलाने होलिका , सत्य न्याय अरु धर्म।
कमलनैन पावक शमन , हर दानव दुष्कर्म।।५।।
राष्ट्रधर्म नैतिक प्रथम , सद्विवेक मतिमान।
विवेकानंद श्रद्धाञ्जलि,शान्ति प्रेम सम्मान।।६।।
चलें कर्मपथ प्रीति रथ , विश्वविजय था ध्येय।
स्वामी जी संदेश जग , आस्तिकता हो गेय।।७।।
स्वामी जी अभिलाष मन,मानवता हो धर्म ।
जाति धर्म दुर्भाव बिन , बढ़े राष्ट्र सत्कर्म।।८।।
हो परहित सौहार्द्र मन , दीन हीन हो देश।
राष्ट्र शक्ति मन भक्ति हो , एक राष्ट् संदेश।।९।।
निर्माणक जो है भविष्य , युवा राष्ट्र सम्मान।
चले नीति शिक्षण पथी , नवसर्जक अरमान।।१०।।
आज युवा उन्माद पथ , देख दुखी निकुंज।
कर विस्मृत निज ध्येय को , देश द्रोह बन पुंज।।११।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
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