परिवर्तन
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों सोच नहीं पाया
पितृ भक्त, पुत्र ने
पिता के मरते ही
उनकी ही याद में
उनकी ही पूंजी से
छोटी सी मठ
खलियान में बन वाली
मन में इतनी उमंग थी
जैसे स्वर्ग लोक बनवा दी
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों सोच न पाया
विरोधा भासी दृश्य देख
आश्चर्य हुआ,आत्मीय जनों को
शयन कक्ष में,भड़क दार कैलेंडर
टांग रखे हैं, घरवाली ने
मातृ पितृ भक्ति की जगह
आधुनिकता ने क्यों जन्म ली
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों, सोच नहीं पाया
छोटे छोटे बच्चो को,अंग्रेजी शिक्षा
सरकार दे रही,प्राइमरी में
नई सदी में,शिशु
पृथ्वी पर,आयेगा तो
रोयेगा भी अंग्रेजी में
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में
एक दिन,ऐसा परिवर्तन आयेगा
मै क्यों,सोच नहीं पाया
प्यार की राह,दिखा दुनिया को
रोके नफरत की आंधी
तुममें से ही,कोई गौतम होगा
तुममें से ही कोई,होगा गांधी
नूतन लाल साहू
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
परिवर्तन नूतन लाल साहू
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