प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*
मादर ए हिंद*
हम रहें न रहें जिंदगी चार दिन, फर्ज रहेगा सदा ये जमाना नहीं ।
मादर ए हिंद को लाख सजदा मेरा, करें कुर्बान तन मन सताना नहीं।।
ताज हिमालय सुघर पासबां वो प्रखर, पाँव धोता समन्दर रहकर तले,
आसमां को तिरंगा छुए चक्र से, व्यर्थ कतरा लहू का बहाना नहीं।।
धूलि इसकी है चंदन सुरम्य घाटियां, बाग वन सर सरोवर मिटाना नहीं।
चीर धानी सुहावन अरुण भाल पर, स्याह धब्बे वदन पर लगाना नहीं।।
पालती पोषती वत्सला मॉं मेरी, भारती आरती पुत्र सक्षम रहें,
वन्दे मातरम् भारतम् मंगलम्, इस उद्घोष रव को झुकाना नहीं।
व्यर्थ की बातें करें व्यर्थ का दंभ भरेंऐसी वृत्ति का देखा ठिकाना नहीं।
गिर जाए अबल गर निश्चित उठाइए, नजर से गिरे को कभी भी उठाना नहीं।।
क्या ले आए जग क्या साथ जाए प्रखर, वाहक विद्वेष कर मनभेद को बढ़ाऐं क्यों?
निस्पृह जीवन शुद्ध ह्रदय प्रेम विवेक बुद्धि, अनर्गल प्रलाप कर पर हिय को दुखाना नहीं।।
*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*
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