प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद
मन में झंझावात बहुत
तन का गणित समझने वालों, मन में झंझावात बहुत है।
प्रेम व्याकरण उलझा सुलझा, कठिन डगर आघात बहुत है।।
तुम क्या समझो विरह उदासी, दुविधाओं में जीना दुष्कर।
तिल तिल जलना तन्हां घुटना , फिर भी जीना प्रियवर प्रणकर।।
किंचित छायी सघन अमावस, यद्यपि आस प्रपात बहुत है।।
*मन में झंझावात बहुत....*
उपापोह के बीच जिंदगी, उछ्श्वांस का व्यस्त अभिकरण।
स्पंदित अधरों में क्रदंन, सरल नहीं प्रिय प्रेम व्याकरण।।
आकुल मानस चिंत वृत्ति उर, हा वय के क्यों उत्पात बहुत है।।
*मन में झंझावात बहुत....*
तुमसे भोर सुहावन मेरी, तुमसे निखरे अरुणाई।
खिली चंद्रिका सी अभिलाषा, तुम बिन सूनी तरुणाई।।
आ जाओ हद से हदवासी, कालगती की बिसात बहुत है।।
*मन में झंझावात बहुत....*
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*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*
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