प्रतिभा गुप्ता
आलमबाग,लखनऊ
माँ तुम्हारी वंदना करती रहूँ।
काव्य की मैं साधना करती रहूँ।
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धूप,दीपक और रोली, पुष्प से,
हो मगन मैं अर्चना करती रहूँ।
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है तिमिर घनघोर माँ आलोक दो,
हो निडर मैं सामना करती रहूँ।
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श्रेष्ठ भावों से सजी हो गीतिका,
मैं कलम से सर्जना करती रहूँ।
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मन कभी ना चूर हो अभिमान में,
सिर झुकाकर प्रार्थना करती रहूँ।
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अनवरत प्रतिभा चले यूँ लेखनी,
व्यक्त अपनी भावना करती रहूँ।
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प्रतिभा गुप्ता
आलमबाग,लखनऊ
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