प्रिया सिंह लखनऊ गम्भीर होकर बस बिलखती रही जिन्दगी

गम्भीर होकर बस बिलखती रही जिन्दगी 
किताबों के पन्नो सी पलटती रही जिन्दगी 


शब्दों ने इसमें मिलकर चरित्र बना डाला 
एक ही किताब में सिमटती रही जिन्दगी 


किस्से कहानियाँ सब इकठ्ठा तो है इसमें 
कई पयाम देकर भटकती रही जिन्दगी 


गेसुओं की दरकार नहीं इस बेनज़ीर को
इश्क के इब्तिदा में उलझती रही जिन्दगी 


काँच के टुकड़ों पर कारीगरी दिखाती वह
इबादत के शाख से बिखरती रही जिन्दगी 


अल्लाह, बेदाद करती है मेरी मासूम सी जां 
मुक़द्दर के आस में निखरती रही जिन्दगी
 


पयाम:-संदेश
इब्तिदा :- आरम्भ/अनुष्ठान 
इबादत:- पूजा
बेदाद:-अन्याय /अत्याचार 
मुकददर:- किस्मत 


Priya singh


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