कमबख्त मेरे पाँव के छाले नहीं जाते ।
फिर भी मेरे आँखो से जाले नहीं जाते ।।
मेहनत मेरी तरह कोई कर के तो बता दो।
मगर,बच्चों के पेट तक निवाले नहीं जाते।।
उम्र का मेरी हथेलियों पर हिसाब नहीं होगा ।
मेरे हाथों से भी औजार और भाले नहीं जाते।।
बात ऐसी हो गई कि रोगों में जकड़ गया हूँ ।
दर्द दरअसल अब मुझसे सम्भाले नहीं जाते।।
लहू पर मेरे चल कर साहब, देश इतराता है।
कुछ कष्ट भरा संघर्ष जो टाले नहीं जाते ।।
यूँ तो देश को आस्तीन की जरूरत तो नहीं है।
पर ये सांप बिना आस्तीन के पाले नहीं जाते।।
Priya singh
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें