प्रिया सिंह लखनऊ गीतिका कमबख्त मेरे पाँव के छाले नहीं जाते

कमबख्त मेरे पाँव के छाले नहीं जाते ।
फिर भी मेरे आँखो से जाले नहीं जाते ।।


मेहनत मेरी तरह कोई कर के तो बता दो।
मगर,बच्चों के पेट तक निवाले नहीं जाते।।


उम्र का मेरी हथेलियों पर हिसाब नहीं होगा ।
मेरे हाथों से भी औजार और भाले नहीं जाते।।


बात ऐसी हो गई कि रोगों में जकड़ गया हूँ ।
दर्द दरअसल अब मुझसे सम्भाले नहीं जाते।।


लहू पर मेरे चल कर साहब, देश इतराता है।
कुछ कष्ट भरा संघर्ष  जो टाले नहीं जाते ।।


यूँ तो देश को आस्तीन की जरूरत तो नहीं है।
पर ये सांप बिना आस्तीन के पाले नहीं जाते।।



Priya singh


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