राजेन्द्र शर्मा राही गजल शान है मेरी तिरंगा मत इसे कपड़ा समझना

राजेन्द्र शर्मा राही


गजल
शान है मेरी तिरंगा मत इसे कपड़ा समझना
ताक में दुश्मन खड़ा हैे मत कभी पलकें झपकना


मुश्किलों से मिल सकी है देश को आजाद धरती
अब नहीं स्वच्छंदता से मंच पर फूहड़ मटकना


ये धरा है ऋषि मुनी की तप तपोबल से भरी है
छोड़ तो तुम अब नशे को मत कभी पीना बहकना


काट डाले पेड़ वन के यह धरा विकसित बनाने
अब कहां है डाली पर वो पक्षी का  उड़ना चहकना


अब नदी नाले भरे हैं अपनी डाली गंदगी से
अब कहां वो बाग जिसमें फूल का खिलकर महकना


पाप की हर कामना को आज से अब से भगा दो
देशहित में नित जियो यह बात ढंग से सब समझना


मत जगाओ बाल मन में काम कुत्सित कामनायें
देख सुन बिगड़े युवा अब मंच पर  कैसा मटकना


अब चलो हम उठ खड़े हों राष्ट्र की इस वंदना में
बात राही कह रहा हैं सोचना ढंग से समझना
राजेन्द्र शर्मा राही


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