रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह
आज की कुण्डलियाँ ----वसुधा---
वसुधा की आवाज सुन ,
करती है चीत्कार ।
कौन बचाये लाज रे ,
करें कौन श्रृंगार ।।
करे कौन श्रृंगार ,
हुए हैं सब जहरीले ।
बात करे पुरजोर ,
मंच तक बड़े सजीले ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
घटित घटनाएं बहुधा ।
होती सदा निराश ,
तड़पती लगती वसुधा ।।
~ रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह
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