रत्ना वर्मा
धनबाद- झारखंड
" बसंत आ गया है "
कविता " ....
" बसंत आ गया है "
प्रकृति सौन्दर्य को न्योता दे रहा है कोई,
लगता है बसंत आ गया है !!
मन में उठते उमंगों की डोली सजने लगी है ,
लगता है बसंत आ गया है !!
सांसो की सिहरन छेड़ रहा है राग कई ,
लगता है बसंत आ गया है !!
गुलाबी गालों पे कामदेव की थपकी ,
लगता है बसंत आ गया है !!
शाखों से लगे पत्ते कुछ झूम रहे बौराए से ,
लगता है बसंत आ गया है !!
महुए की महक, जैसे मद का प्याला,
लगता है बसंत आ गया है !!
भ्रमर और तितलियों का फूलों पर फिरना ,
लगता है बसंत आ गया है !!
स्वरचित मौलिक रचना
सर्वाधिकार-सुरक्षित
रत्ना वर्मा
धनबाद- झारखंड
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें