ऋषभ तोमर राधे अम्बाह मुरैना

ऋषभ तोमर ‘राधे'
अम्बाह मुरैना मध्यप्रदेश
कही भरी खुशियाँ जीवन मे कही पे ये घट रीत गया
हँसते -रोते, गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया
 
प्यार किया था इक़ लड़की से यादों में उसकी रोया
तन्हा- तन्हा रहा रात भर इक़ पल भी मैं न सोया
नही रहा मेरा कुछ मुझमें तन मन उसका मुझे लगा
हार स्वयं को इस तरह में इश्क़ की बाजी जीत गया
हँसते- रोते, गिरते- उठते ये भी साल तो बीत गया


संग लेकर आया था अपने शर्दी, गर्मी और बरशे
स्वपनों को पूरा करने कुछ पंख लगाये नई ख्वाहिशें
लेकिन हौले हौले से अपना सब कुछ  ये बांट गया
कही भरी खुशियाँ जीवन मे कही पे ये घट रीत गया
हसंते- रोते , गिरते- उठते ये भी साल तो बीत गया


मिटा गया कुछ पर देके ये मुझको नये सवाल गया
आगे बस सुलझाऊ जिसको ऐसा देके जाल गया
सिसक तड़प उमंग हर्ष न जाने दे कितने लफड़े
अच्छी- बुरी यादों के संग देखो ये मन प्रीत गया 
हंसते- रोते गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया


संग लेकर आया ये अपने छोटी मोटी कई उलझने
खोजा तो पाया मैंने कि इसमें ही बसती है सुलझने
लेकिन खोज -बीन में इसने ऐसा खेल रचाया कि
मीत नये कुछ देके मुझको, लेके कुछ मनमीत गया
हँसते- रोते ,गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया


हर साल की तरह इसमें भी वो बारह मास पुराने थे
गर विजय मिली तो बड़े बोल बाकी देने को बहाने थे
इस तरह नया नही कुछ था न मुझमें न इस में भाई
मैं भी खुलके चीख लिया ये फिर भी ले संगीत गया
हँसते -रोते ,गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया


होली,दीवाली, ईद ,दशहरा ,क्रिसमस देके गुजर गया
कुछ मीठी, कुछ कड़वी यादे देके देखो बिखर गया
लिखने जब बैठा मैं इसपे इतना ही लिख पाया कि
देकर कई नगमे ये मुझे, मुझसे लेकर इक़ गीत गया
हँसते- रोते, गिरते -उठते ये भी साल तो बीत गया


ऋषभ तोमर राधे
अम्बाह मुरैना


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