सचिन साधारण
चीरहरण
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जख्म वो किसको दिखाऐ
दर्द वो किसको सुनाऐ,
यातनाऐ सह रही थी
भावनाऐ दह रही थी,
कौरवो के मध्य नारी
चीख करके कह रही थी,
क्यो नही आऐ कन्हैया
क्यो नही आऐ कन्हैया।
नग्न था मेरा बदन जब
शोर मे डूबा सदन जब,
नुच रहा था वक्ष मेरा
मौन था हर पक्ष मेरा,
खून मे लतपत खडी मै
प्रश्न तुमसे कर रही थी,
क्यो नही आऐ कन्हैया
क्यो नही आऐ कन्हैया।
वार जितनी बार मैने
सह लिए वो वार कम थे,
और नयनो से छलकते
आंसुओं के तार कम थे,
ज़ालिमो के हाथ मेरी
लुट रही अस्मत बचाने,
क्यो नही आऐ कन्हैया
क्यो नही आऐ कन्हैया।
चल रही हूं लड़खड़ा कर
चोट एसी खा चुकी हूं,
मै कली से फूल बन कर
टूट कर मुरझा चुकी हूं,
प्रश्न अंतिम है बिखरते
ख्वाब तुम मेरे बचाने,
क्यो नही आऐ कन्हैया
क्यो नही आऐ कन्हैया।
सचिन साधारण
7786957386
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