अपने हृदय में हम कोई तस्वीर लगाये रहते है
मन के दर्पण में कोई प्रतिबिम्ब बनाये रहते है
कर दिया समर्पित यह जीवन जिसको हमने
अपने मन मंदिर में वही मूरत बिठाये रहते है
प्रातः काल अरुणिमा सी आलोकित करती वो
उस मोहिनी सूरत को आँखों में बसाये रहते है
कुंदकली सी मुस्कान आनन्दमयी कणिका वो
मेरे जीवन में सुखद अनुभूति दिलाये रहते है
अनुराग पीयूष से पूरित मकरन्द भरी वह
स्व यौवन सुरभि से अंग महकाये रहते है।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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