श्याम कुँवर भारती [राजभर]
भोजपूरी लोकगीत (पूर्वी धुन ) – तोहरो संघतिया
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
करे मनवा तनवा के झकझोर |
बिसरे नाही प्रेमवा के बतिया ,
बरसे मोरे नयनवा से लोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
कइके वादा हमके बिसरवला |
तोड़ी नेहिया के बहिया छोडवला |
सुनाई केतना हम आपन बिपत्तिया |
मिले नाही हमके कही ठोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
तोड़े के रहे काहे दिलवा लगवला |
सुघर काहे हमके सपना देखवला |
साले हमके तोहार सावर सुरतिया |
चले नाही केवनों दिलवा प ज़ोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
भूखियो न लागे हमके नींदियों ना लागे |
मखमल के सेजिया कटवा जस लागे |
सही केतना हम लोगवा ससतिया |
तरवा गिनत हमके होई जाला भोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
जिनगी डुबवल भवरिया सवरिया |
बिरह के अगिया जरे ई गूज़रिया |
नागिन जईसे डसे कारी रतिया |
भरीला तू भर अंकवरिया माना बतिया मोर |
याद आवे जब तोहरो संघतिया |
करे मनवा तनवा के झकझोर |
श्याम कुँवर भारती [राजभर]
कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
मोब /वाहत्सप्प्स -9955509286
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