कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नई दिल्ली
शीर्षकः सिंहनाद
बंद होंगे धन कुबेर , कामधेनु के चोर।
कल्पवृक्ष होंगे फलित , चले सुदर्शन घोर।।१।।
दंगाई का शमन अब , शैतानों पर घात।
बेईमानों की शामतें , जो खेले जज़्बात।।२।।
त्वरित प्रगति हो पाप का , सच में लगता देर।
अंत सुखद सच अमन का,पाप विकट हो ढेर।।३।।
अति होता जब पाप का , हो अधर्म का राज।
नारायण अवतार भुवि ,अधर्म नाश समाज।।४।।
सिंहनाद कर चक्रधर , दिखला रूप विराट।
गद्दारी आतंक हर , लूटकुबेर सम्राट।।५।।
अर्थ नहीं शान्ति विनय , सहें राष्ट्र से द्रोह।
मिटे सुखद कुसमित अमन, तजें क्षमा का मोह।।६।।
चला पार्थ गाण्डीव शर , नारायण उद्घोष।
चक्रव्यूह रच साथ खल , अभिमन्यू भर जोश।।७।।
खण्डन को तत्पर वतन , देशद्रोह नापाक।
सिंहनाद करता निकुंज , नारायण कर खाक।।८।।
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