*प्यारी ऋतू बसंती*
प्यारी ऋतु बसंती आई है|
चँहु ओर ही रौनक लाई है।
गई कडाके की अब सर्दी |
शीतल शीतल ठंड सुहाई है |
हुआ नही गरमी का आगम |
मंद मंद धूप मुस्काई है |
पतझड के सूखे वृक्षों पर |
नई नई हरी कोपलें आई हैं ।
लहक रही है सरसों रानी |
पीले पीले फूलों पे मस्ती छाई है |
गेहुओं मे निकली नई बालियां |
हरी हरी फसल लहलहाई है |
रंग बिरंगे फूलों से सजकर |
सुन्दर सुन्दर धरा इतराई है |
प्यारी ऋतु बसंती आई है|
चँहु ओर ही रौनक लाई है |
सुनीला
गुरुग्राम हरियाणा
9671461351
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीला गुरुग्राम हरियाणा बसंत कविता
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