सुनीता असीम आगरा
आप हमको प्यार में बस आजमाना छोड़ दें।
साथ देके कुछ हमारा यूँ जताना छोड़ दें।
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कर दिया हमको बड़ा माँ-बाप ने जैसे किया।
कर्ज उनका क्या बड़े होकर चुकाना छोड़ दें।
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जिन्दगी में साथ अपने कुछ बुरा जो हो गया।
तो खुदा के सामने सर को झुकाना छोड़ दें।
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दीन दुखियों को सताना और उनको मारना।
पाप ऐसे कर्म से हम अब कमाना छोड़ दें।
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प्यार देती है हमें ममता लुटाती है सदा।
प्रेम की मूरत रही माँ को रूलाना छोड़ दें।
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सुनीता असीम
१८/१/२०२०
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