सुनीता असीम अगर तन छोड़कर जाएँ जहाँ से।

अगर तन छोड़कर जाएँ जहाँ से।
नहीं हम मोह रक्खें आशियाँ से।
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नहीं थकते कभी बातों से तुम हो।
कि बातें इतनी हो लाते कहाँ से।
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जो फूलों को चमन से तोड़ना हो।
इजाजत लेना पहले बागबाँ से।
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किसी से बात कड़वी मत करो तुम।
मुहब्बत की करो बातें जुबाँ से।
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नहीं रहना उदासी से भरे तुम।
विदा लेना कभी जब कारवाँ से।
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कचहरी में गवाहों का दखल है।
पलटते हैं गवाही में बयाँ से।
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जिगर से चाक होंगे सब विरोधी।
चलाएं तीर सरकारें कमाँ से।
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सुनीता असीम
३०/१/२०२०


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