अगर तन छोड़कर जाएँ जहाँ से।
नहीं हम मोह रक्खें आशियाँ से।
***
नहीं थकते कभी बातों से तुम हो।
कि बातें इतनी हो लाते कहाँ से।
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जो फूलों को चमन से तोड़ना हो।
इजाजत लेना पहले बागबाँ से।
***
किसी से बात कड़वी मत करो तुम।
मुहब्बत की करो बातें जुबाँ से।
***
नहीं रहना उदासी से भरे तुम।
विदा लेना कभी जब कारवाँ से।
***
कचहरी में गवाहों का दखल है।
पलटते हैं गवाही में बयाँ से।
***
जिगर से चाक होंगे सब विरोधी।
चलाएं तीर सरकारें कमाँ से।
***
सुनीता असीम
३०/१/२०२०
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम अगर तन छोड़कर जाएँ जहाँ से।
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