सुनीता असीम
अक्स आता है नज़र प्यार की परछाईं में।
दूर होते हैं गिले इश्क की गहराई में।
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प्यार माकूल सदा उसके लिए सिर्फ रहा।
खो गया इश्क की जो भी यहाँ रानाई में।
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दर्द दिल का हो बेहद जियादा तब तो।
डूबने आँसू लगे शादी की शहनाई में।
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शायरी लिखने लगे फिर तो कलम खूब मेरी।
जोर मुझको जो मिला हौंसला अफजाई में।
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जब समाँ आया उदासी का सताती थी हवा।
चाँद देता था तपन हिज्र की पुरबाई में।
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सुनीता असीम
२९/१/२०२०
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