उत्तम मेहता 'उत्तम'
गजल
ख़्वाब मेरे बिन तेरे वीरान हैं।
नींद आहत,धड़कनें हैरान हैं ।
फ़क्र जिसको ख़ुशनसीबी पर रहा।
हादसों से शख़्स वो अनजान है।
जो हुआ हासिल उसी में ख़ुश रहो।
ग़म तो बस दो पल का ही महमान है ।
जो तराशे दर्द ने अशआर कुछ।
ये मेरे उस्ताद का वरदान है ।
नज़्म यह भी ख़ूबसूरत है मेरी।
यूँ कि इसमें तेरा ही गुणगान है ।
हैं सभी उस्ताद औ आलिम यहाँ।
आप से ही महफ़िलों की शान है ।
मैं कोई मशहूर शायर तो नहीं।
नाम उत्तम ही मेरी पहचान है ।
उत्तम मेहता 'उत्तम'
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