विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग
कभी छांव कभी धूप
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पथिक सुनो पथ जीवन मे
कभी छांव कभी धूप
आशा और निराशा दोनों
जीवन के दो रूप ।
बिरवा अगर लगाया है तो
शीतल छांव भरोसा रख
भ्रम भटकाव छोड़़ दे पगले
निज भावों को सदा परख
अंत एक सबकी गति
क्या सेवक क्या भूप
पथिक सुनो पथ जीवन मे
कभी छांव कभी धूप ।
कुमति कपट से मुक्त हो
सुंदर स्वच्छ विचार
अंतर मन की व्याधि का
एक यही उपचार
भव सागर से पार लगाए
निज कर्मों प्रतिरूप
पथिक सुनो पथ जीवन मे
कभी छांव कभी धूप ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-694
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