हे भगवन्ना याक दाँउ हमका परधान बनाइ देउ ।
ए. सी.वाली कारइ बढ़िया आधा दर्जनु खरिदाइ देउ .।।
फिरि गर-गर-गर-गर चला करब
न सर्दी-गर्मी कछु लागी ।
सगरा मनई फिरि गाँउं भरेक हाँजू- हाँजू पाछे लागी ।।
हम ध्यानु कोऊ वर नाइ द्याब नेकिल आश्वासनु द्याब खूब ।
यहिके एतने वहिके वतने रुपया पइसा फिरि ल्याब खूब ।।
अबकी चुनाउ मा सबकी मति हमरेन वरिहाँ भरमाइ देउ ।
हे भगवन्ना याक दाँउं हमका परधान बनाइ देउ ।।
कगजन पर सगरे काम करब न भुँइं पर तनिकउ करब काम ।
वृध्दा विधवा पेन्सनि तक का पइसा न छ््वाड़ब दाम-दाम ।।
कालोनी अउ शउचालइ का एकधौं हम सबका सखरि ल्याब ।
नेकिल जब अइहँइं तब सगरी धीरेन- धीरे हम डकरि ल्याब ।।
जब नम्बरु धरब मनरेगा पर तब रुपयन की खरही लगिहँइं ।
जिनके खाते से दस हजार निकसी उइ दुइ सै लइ भगिहँइं ।।
नाली अउरु खड़ंजा का पइसा कइसेउ निकसाइ देउ ।
हे भगवन्ना याक दाँउं हमका परधान बनाइ देउ ।।
हम गाँउंक अइस विकासु करब भों-भों-भों-भों मनई रोइहँइं ।
हमरी परधानिकि दइ मिशाल दोसरे गाँवन का समुझइहँइं ।।
आगा-पाछा सबु सोंचि लेहेउ फिरि पंच अउरु परधान चुनेउ ।
सब खूब बकइहँइं तुमका पर तुमहूँ कुछु अपने मन की सुनेउ ।।
देखेउ-भालेउ,जानेउ- समझेउ फिरि चिंतनु-मंथनु करेउ खूब ।
जेहिते ई पाँच साल तुमका काटइ मा फिरि लागइ न ऊब ।।
हम कहब जउनु ऊ करब नाइं नेकिल हमका जितवाइ देउ ।
हे भगवन्ना याक दाँउं हमका परधान बनाइ देउ ।।
विवेक अग्निहोत्री
(9455443343)
(20-12-2019)
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
विवेक अग्निहोत्री रतौली सीतापुर अवधी काविता प्रधान बनाए देव
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