विवेक दुवे निश्छल रायसेन हालतों से डरकर क्या होगा ।

हालतों से डरकर क्या होगा ।
घुट घुट के मरकर क्या होगा ।


लड़ जा ले साहस को अपने ,
देखें तो लड़कर क्या होगा ।


हार हुई हरदम हालतों की ,
साहस से बढ़कर क्या होगा ।


चलता चल दूर क्षितिज तक ,
कुंठाओं में घुटकर क्या होगा ।


 सहज सुहानी यादें मन भीतर ,
 चिंता मन में धरकर क्या होगा ।


"निश्चल" आज यही है साथ यही है ,
कल की चिंता करकर क्या होगा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...


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