🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
भिलाई दुर्ग छग
छत्तीसगढ़ी दोहा
आनी-बानी खायके,मेला यश सकलाय।
दाँत झरे हे ढोकरा,ठाण चना पगुराय।।
दिल मा दिल के मेल नहि,मेला हे इंसान ।
भीड़ भरे यश पोठ कन,हाबे सब अनजान ।।
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी 🌷
भिलाई दुर्ग छग
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
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