भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"अलि"* (दोहे)
****************************
¶नेह लुटाता पुष्प पर, प्रेमिल-पहल-पुकार।
पीकर मधु-मकरंद को, करता अलि गुंजार।।


¶मँडराता है-हर कली, अलि-मन-मत्त-मतंग।
गीत मिलन-गाता चला, मधुकर मस्त मलंग।।


¶भिक्षु अकिंचन अलि बना, मन-मधुराग-पराग।
तृप्ति कहाँ पर प्रीति की? लहके लोलुप-लाग।।


¶सीख-मिटे हर भेद-मन, वाहित-वासित-वात।
संस्मृति अलि मधु-मुरलिका, परसन-पुण्य-प्रभात।।


¶सरसाया अलि-मन मगन, प्रेम-पुष्परस-पान।
आह्लादित है स्पर्श से, पाकर अलि अवदान।।
****************************
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
****************************


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...