अलविदा
जा रहा हूं दूर तुमसे अलविदा अब आपको।
लौटा रहा हूं आज मैं सारी यादें आपको।
तुम्हें जी भर देखने मजकी मेरी तमन्ना रह गई।
लब चूमती दिलकश हंसी अब ख़्वाब होकर रह गई।
कोशिशें कैसी करूं मैं जो भुला पाऊं आपको।
लौटा रहा हूं आज मैं सारी यादें आपको।
साथ बीते हसीं लम्हे वक़्त के संग खो गये। मजबूरियों की आग में अरमान सारे जल गये।
हर पल रहा बस मांगता कुछ दे न पाया आपको।
लौटा रहा हूं आज मैं सारी यादें आपको।
अब कभी ना दिन गिनूंगा अब न मैं राहें तकूंगा।
ख़ामोशियों में भी कभी मैं सदा कोई सुनूंगा।
दिल की बगा़वत का तभी अहसास होगा आपको।
लौटा रहा हूं आज मैं सारी यादें आपको।
फूल तो अब भी खिलेंगे खु़शबू कहां होगी मगर।
क्या बात मंजिल की करूं जब खो गई मेरी डगर।
जा न पाऊंगा कभी जो मुड़ के देखा आपको।
लौटा रहा हूं आज मैं सारी यादें आपको।
कैसी कशिश है आप में जो होश मैं खोता गया।
दीदार की हसरत लिए मदहोश मैं चलता गया।
आवाज़ मेरी खो गई कैसे पुकारूंं आपको।
लौटा रहा हूं आज मैं सारी यादें आपको।
कब कहां क्यूं और कैसे हम मिल गये किस मोड़ पर।
निकल आए बहुत आगे रिश्तों को पीछे छोड़ कर।
अब याद मैं किसको करूं कसदन भुला कर आपको।
लौटा रहा हूं आज मैं सारी यादें आपको।
चाहत कैसी है मेरी रिश्ता कैसा अनजाना।
भटका एक मुसाफ़िर हूं बिना शमा के परवाना।
मुफलिसी मेरा ख़ज़ाना सौगात क्या दूं आपको।
लौटा रहा हूं आज मैं सारी यादें आपको।
सुरेन्द्र मिश्र
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुरेन्द्र मिश्र पूर्व निदेशक ATI कानपुर
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