भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

ताटंक छंद गीत
माना कि सफर कुछ लंबा है, चलते ही पर जाना है।
पथ पर अविचल चलकर  ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।
चाहे जितने अटकल आयें, मंज़िल को तो पाना है।
पथ पर अविचल चलकर  ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।


*ऋतुएँ भी तो बदलेंगी ही, शरद-उष्ण भी आना है।
सहकर मौसम की मारों को, समरस-सुमन खिलाना है।।
हर्षाकर हिय भारत भू का, अमन-चमन लहकाना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।


*नवल-शोध, नित नव उन्नति से, कर्म-केतु फहराना है।
हम हैं पावक-पथ के पंथी, लोहा निज मनवाना है।।
हार-हराकर हर हालत में, प्रशस्त पंथ कराना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।


*मानवता के जो हैं रोधी, उनको सबक सिखाना है।
आस्तीन-छिपे साँपों का भी, फन अब कुचला जाना है।।
लिख साहस से इतिहास नया, अपना धर्म निभाना है।
पथ पर अविचल चलकर ही तो, कंटक-जाल हटाना है।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511