भरत नायक"बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"सपना"* (ताटंक छंद गीत)
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विधान-१६+१४=३०मात्रा प्रति पद, पदांत SSS , युगल पद तुकबंदी।
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*नींद उड़ा दे जो आँखों की, मति को भी उकसाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो, 'सपना' वह कहलाता है।।
सच्चा-साधक सत्कर्मो से, सपनों को पा जाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो, 'सपना' वह कहलाता है।। 


*उच्चाकांक्षा पाल रखे जो, धुन में कब सो पाता है?
होता आराम हराम सदा, कोलाहल मच जाता है।।
सतत चुनौती स्वीकारे जो, सपने सच कर जाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो,
'सपना' वह कहलाता है।।


*जब भी देखो ऊँचा देखो, सपना बडा़ सुहाता है।
पूर्ण करे जी जान लगा जो, कर्मठ वह कहलाता है।।
पावक-पथ को पार करे जो, नव इतिहास बनाता है।
ठोस इरादा मन में जो हो,
'सपना' वह कहलाता है।।


*दम पर अपने नभ को नापे, पंख पसारे जाता है।
भरे बुलंदी जो नित निज में, शुचि-संदेश जगाता है।।
करता सपना जो वह पूरा, जग उसको दुहराता है।
ठोस इरादा मन में जो हो, 'सपना' वह कहलाता है।।
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भरत नायक"बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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