*मधु के मधुमय मुक्तक*
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*स्वाभिमान*
◆स्वाभिमान के बिन कहाँ,होता है सम्मान।
मानव होता पशु निरा,जो सहता अपमान।
स्वाभिमान जो निज धरे, देशप्रेम के नाम,
सदा सुखद अहसास से, बने देश की शान।।
◆कठिन घड़ी विश्वास से,जाए निः संदेह।
सुखद धरा वह ही करे,छोड़ चले जब देह।
देश प्रेम के भाव से, होता है अभिमान,
स्वाभिमान ऐसे बसे,जो भर दे नव नेह।।
◆माया बंधन है सुखद, कष्ट मूल वैराग।
भटक रहा जो मोह में, पाये वह अनुराग।
स्वाभिमान जीवन छले,गर हो झूठी आस,
सत्य भाव जिस मन बसे, गाता वो *मधु* राग।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
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