नवीन नामदेव "निर्झर"

तेरा नेह निश्छल आधार अपार सा।
सहज, स्वस्फूर्त, सहज निर्विकार सा।।
देता अन्तस् को एहसास सा।
अंतहीन व्योम के प्रकाश पुंज सा।।
अनोखा आल्हादित करता सा। पल पल मुझको रोमांचित करता सा।।
अदभुत ये अहसास बना सा।।
ह्रदय का ह्रदय से  संवाद करता सा ।।
जुबाँ हुई  खामोश मगर
नज़रों से ही बोल पड़ा सा ।।


भोली सूरतका सच्च्ची सीरत ।
कड़वी सी थोड़ी पर खट्टी सी शरारत।।
आकंठ डूब जाता मन मेरा।
जब जब देखूँ तुमको में तो 
जब जब सोचूँ तुमको तब में।।


अंतर की ज्योतिर्मय राह सी।
तुम बहती मन मानस में मेरे सतत् "निर्झर" निर्मल प्रवाह सी ।।
ईश्वर की स्वाभाविक कृति जैसे तुम।
सरल सहज तुम निश्छल अप्रतिम।।
मन हो जाता सुवासित 
जब महके महके तुम मधुरतम।।
चंदन रोली माथे जब  लगती ।
हाथ कलाई मौली बंधती।।
उस पर आँखों से बोले बोल।
मन मेरा  बन मयूर सा 
करता रहता मधुर  किलोल।।
करता रहता मधुर  किलोल।।
"निर्झर"


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