*"वीर-जवान"* (आल्हा छंद)-भाग १
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विधान- १६ + १५ = ३१ मात्रा प्रतिपद, विषम चरणांत $ या l l एवं सम चरणांत $ l अनिवार्य, चार चरणमय दो-दो पद तुकांतता।
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¶सीमा का वह रक्षक सच्चा, अड़ा रहे जो सीना-तान।
चलता जान हथेली पर ले, निज भू पर जो वारे जान।।
¶मूर्ति वीरता की वह जानो, स्वरूप शाश्वत शक्ति समान।
करे प्राण-पण से जो रक्षा, साहस वीरों की पहचान।।
¶देश-जान से बढ़कर जाने, न्योछावर कर दे जो प्राण।
सीमा के संकट को टाले, आर्त हरे बन आरत-त्राण।।
¶लेता लोहा बैरी से जो, केहरि सम जो करे दहाड़।
देश राग की तान सुनाये, जीत-तिरंगा झंडा गाड़।।
¶कदम कभी भी हटे न पीछे, आगे बढ़कर ठोंके ताल।
ऐसा वीर जवान हमारा, बन जाता कालों का काल।।
¶छक्के छूटे दुश्मन के जी, करता अपना वीर कमाल।
'लोहित कर महि अरि-शोणित से, रखे देश का ऊँचा भाल।।
¶जनहित में तज देता जो, नाते-रिश्ते घर-परिवार।
माँ पर गाज न गिरने देता, सुनकर दौड़े वीर-पुकार।।
¶हम पर आँच न आने देता, करके पूरा-प्रण जी-जान।
कफन तिरंगा ओढ़े आता, ऐसा अपना वीर-जवान।।
¶निशि-वासर को एक करे जो, दलदल-जंगल-नदी-पहाड़।
तैनात रहे हर मौसम में, जिस्म जले या काँपे हाड़।।
¶दबे ऊँगली तल दातों के, सैनिक की तो देख उमंग।
देख वीरता हिंद-वीर की, रह जाती है दुनिया दंग।।
¶नित वीर लिखे इतिहास नया, रखने को माटी का मान।
राष्ट्र-भाल को भाले रखता, घटे कभी मत माँ की शान।।
¶पीछे पीठ कभी न करे जो, भले कटाता अपना शीश।
क्यों न करें सम्मान वीर का, लिखे वीर-गाथा वागीश।।
¶बाँके वीरों के बल पर ही, रक्षित अपना हिंदुस्तान।
ढाल देश-जाँबाज सिपाही, जय जय 'नायक' वीर-जवान!!
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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