अमित अग्रवाल 'मीत'

*"घर के आंगन से उठता स्याह धुआं"*


घर के आंगन से उठता वो स्याह धुआं,
अहसास दिला देता था, मां के घर पे होने का...


रसोई से आती भोजन की लाजवाब खुशबू,
बढ़ा देती थी बरबस ही भूख सबकी...


कभी एक पल भी नहीं सोचा हमने,
कि ये धुआं खराब कर सकता है मां की आंखें...


न ये सोचा कि चूल्हे से उठता ये धुआं,
बिगाड़ सकता है उनकी तबियत कभी भी...


हमें तो सिर्फ पेट की भूख ही नजर आयी,
नहीं नजर आया मां की आंखो से बहता पानी...


वो पानी, जिसकी वजह चूल्हे से उठने वाला धुआं था...
वही स्याह धुआं,
जो अहसास दिला देता था, मां के घर पे होने का...


- रचनाकार
अमित अग्रवाल 'मीत'


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