मन से मन का बन्धन हो।
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तुम भी मौन मैं भी मौन,
फिर भी दोनों के हृदय में स्पंदन हो।
तुम मत सोचो न मैं सोचूँ,
फिर भी भावों का सँगम हो।
मैं हूँ दूर तुम भी दूर ,
मिलन की बस तड़पन हो।
तुम मत गाओ नहीं मैं गाऊँ,
फिर भी सुरों का नर्तन हो।
इस बसन्त में आज है कहना,
मन से मन का बंधन हो।
अनीता मिश्रा
8/2/2020
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