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*'गुल'*
बसन्त ऋतू में हुआ आगमन
पुलकित हुआ सारा मधुवन
खिल गये मन प्राण मेरे
खिल उठा मेरा गुलशन।
'गुल' तुम मेरे आँगन की
तुम महकता मेरा चमन।
ज्योति बन आई हो तुम
तुम से रोशन मेरा जीवन।
मिला ममत्व खिल गई मैं,
लिया जब तुमको हाथों में।
सज़ा आँखों में ख़्वाब नये,
हर पल निहारूँ तेरा आनन।
मैं माली एक उपवन की
सँवार रही थी बगिया को
छोड़ दिया ननिहाल तुझे
देख न पाए तेरा बचपन
नानी के संग पली बढ़ी,
बन गई माँ की परछाई।
नानी ने खूब लाड़-लड़ाया
तेरी यशोदा मैय्या बन।
चंचल हो कन्हैया जैसी
नन्ही सी ये गुड़िया मेरी।
कब छोटी से बड़ी हो गई,
कब गुज़रा तेरा बचपन।
मेरे गुलशन में मुस्कओ
फूल हारश्रृंगार सा बन।
बन कोकिला मेरे घर की,
गुँजित करो तुम ये मधुवन।
उड़ो सपनो के आसमाँ में,
खोल कर अपने पँखों को।
सफलता की सीढ़ियाँ चढ़,
छू लो तुम ऊँचा गगन।
रहूँगी सदा साथ मैं तेरा
बनकर तेरा पथ-प्रदर्शक।
तुम गुल मैं बगवान हूँ तेरा,
महकाओ मेरा घर आँगन।
©®
अंजना कण्डवाल *नैना*
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