अनुराग मिश्र" ग़ैर "
लखनऊ
मठ के संत
आओ प्रिय आ गया बसंत
महक रहे दिग् और दिगंत ।
नव पल्लव फिर मुस्काये हैं
पक्षी फिर कलरव गाये हैं,
झाड़ रहे हैं तरुवर पत्ते
हुआ शीत का अब तो अंत ।
सबके आंगन धूप खिली है
मध्यम पछुवां पवन चली है,
हँसी ठिठोली करती सखियाँ
लौटे हैं घर सबके कंत ।
खिले पुष्प हैं चारों ओर
मधुप मचाते रह-रह शोर,
आकुल है मेरा विरही मन
उर में पीड़ा पले अनंत ।
तुमको ऋतु का भान नहीं क्या?
इन रंगों का ज्ञान नहीं क्या?
तुम हो गये पाषाण हृदय या
बन बैठे हो मठ के संत ।।
अनुराग मिश्र ग़ैर
10-स्वपनलोक कालोनी
कमता, चिनहट
लखनऊ -226028
मो0-941242788
ईमेल-anuraggair@gmail.com
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