अर्चना द्विवेदी अयोध्या उत्तरप्रदेश

 


प्रेम नशा होता एक ऐसा,
पाँव बहक ही जाते हैं।
छूतीं जब साँसों को साँसें,
तन मन महक ही जाते हैं।


बियाबान भी मधुवन लगता,
इक उसके आ जाने से।
बिन मौसम बारिश हो जाती,
केश घने  बिखराने  से।।


भ्रम सा बना रहे इस मन में,
सपनों में वो आएगा।
मुझे जगाकर मीठी धुन में,
राग प्रणय वो गाएगा।।


तन मन दोनों उसके वश में,
साँसों पर उसका पहरा।
दर्पण  रूठा  रहता,जिसको,
भाये न  कोई  चेहरा।।


जाने-अनजाने,होठों पर ,
बात उसी की होती है।
इक इक यादें मोती जैसी,
चुन चुन जिसे पिरोती है।।


उसकी यादों में बह जाना,
तीरथ पावन लगता है।
मिलने की चाहत में  तारे,
गिनकर दिल ये जगता है।।


मात्र तनिक आलिंगन से ही,
सुध बुध खोती जाती है।
तप्त हृदय के जलते तल पर,
शीतल जल बिखराती है।।


शून्य  लगे  ये  जीवन  सारा
उसके बिन अस्तित्व इकाई
जग,वन,पथ लगते हैं प्यारे
चलता बन जब परछाई।।


अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश


 


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