[महिमा]
करत- दरश ईश की,
मन को आया ख्याल।
एक पुष्प पूरन करत,
क्या प्रभु की हर आस।।
जो फूल चढावन हम गये,
भौंरे किये हैं रस-पान।
क्या सोच प्रभु स्वीकार है,
नहिं कोई संवाद।।
प्रभु महिमा या माया कोई,
समझ सके न कोय।
सब जन हित के लिए,
प्रभु ने रचा है ये ढोंग।।
नहिं तो सोचिए आप - जन,
जिसने किया हो जीवन दान।
वो करेगा क्या बाद में,
तेरे अर्थ का पान।।
........ ATUL MISHRA............
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