छंद
ममतामयी मूर्ति हो, सारे जग की कीर्ति हो,
सुधा सरसाती सदा, बड़ी सुखकारी हो।
अपने पाल्यो पे कष्ट , आने नही देती कभी,
करती दुआओं से ही, सदा रखवारी हो।
सूखे में सुलाती हमे, गीले में ही सोती सदा,
आँचल की छाँव देती, बड़ी हितकारी हो।
माँ कैसे करे बखान, हम तो बड़े अज्ञान,
बौने पड़ जाते शब्द, ऐसी वीर नारी हो।
अवनीश त्रिवेदी"अभय"
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